Shivveer - The story of Love - 1 in Hindi Short Stories by Satyam Khaire books and stories PDF | शिववीर -The story of Love - 1

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शिववीर -The story of Love - 1

महावन नाम का एक बड़ा साम्राज्य कहीं युगों से राज करता आ रहा था। राजा का प्रजा से और प्रजा का राजा से बहुत प्यार था। राजा के मरने के बाद उनका बेटा विश्वजीत का राज्याभिषेक करके वो राज्य संभालने लगा, तक्त पर बैठते ही उसने प्रजा से दुगना कर, लेना लगा राज्य की प्रजा को सताने लगा। विश्वजीत से राज्य की प्रजा बहुत ही पीड़ित थी।
विश्वजीत ने बाकी राजाओं को महावन साम्राज्य को जुड़ने को कहा। महावन साम्राज्य पेहेले से बहुत बड़ा होगया । विश्वजीत को सुर्यनगर के राजा आदित्य बहुत परेशान कर रहा था तो उसने छल से मारने का प्रयास किया पर वो असफल रहा । विश्वजीत आदित्य को कभी हारा ना पाया।
विश्वजीत ने बहुत प्रयास करने के बाद अपने भाई शिववीर को भुलाया । शिववीर मन का सच्चा, दयालु, और पराक्रमी योद्धा था । शिववीर की सेना सुर्यनगर की तरफ बढ़ी । आदित्य और शिववीर के बिच में घमासान युद्ध हुआ जिसमें आदित्य की हार हुई। जब यह बात विश्वजीत को पता चला तो उसकी खुशी आसमान छू रही थी।
शिववीर ने आदित्य को दरबार में विश्वजीत के सामने पेश किया। विश्वजीत आदित्य से कहने लगा "कहा गया तुम्हारा पराक्रम' तुम्हारी मेरे सामने कुछ औकात भी नह नहीं है। इस पर आदित्य ने कहा मुझे तब खुशी होती जब तुम मुझे युद्ध में हराते बल्कि तुम्हारा भाई नहीं यह सुनने के बाद तो विश्वजीत का चेहरे का रंग ही उड गया। विश्वजीत ने सैनी कोसे कहा ले जाया जा आदित्य को मरे सामने से...
(कुछ दिनों बाद)
शिववीर जंगल में शिकार करने पोहचा था। बाघ को देखकर वो अपना घोड़ा बाघ के पिछे दौड़ा रहा था।वो जंगल में अंदर तक आ चुका था पर बाघ उससे भाग चुका था। वो आगे गया उसने देखा- एक सुंदर कन्या मिट्टी के घड़े से तालाब से पानी भर रही थी। वो कन्या किसी अफसरा से कम नहीं थी। शिववीर उस रूप का दिवाना हो चुका था।बाघ की गर्जना से पानी का भरा हुआ घड़ा कन्या के हाथ से छूटा और वो बाघ उस की तरफ आ रहा था, तभी शिववीर ने अपना भाला बाघ की तरफ फेंका और उस भाले से बाघ मुर्छित होकर कन्या के परो पर आकर पड़ा। कन्या ने पिछे देखा तो उसे सुंदर पराक्रमी लडका दिखा । आप कौन हो ? शिववीर ने कहा पर उसने उत्तर न देकर कन्या आश्रम की तरफ बढ़ रहीं थीं । शववीर भी उसके पिछे पिछे आश्रम पोहचा ।आश्रम के गुरूदेव ने शिववीर को देखकर कहा युवक कौन हो आप ? और आश्रम में क्या कर रहे हो? शिववीर ने बड़ी नम्रता से कहा गुरुदेव में महावन का रहीवासी हु आपके आश्रम में सेवा करना चाहता हूं कृपया आप मेरी बिंनती स्विकार करें। गुरुदेव ने शिववीर का निवेदन स्वीकार किया।शिववीर गुरुदेव की सेवा करता शिववीर गुरुदेव का कुछ ही दिनों में प्रिय शिष्य बना । गुरदेव शिववीर को ग्रंथों का ज्ञान के साथ कुछ नऐ युद्ध कौशल का प्रशिक्षण भी दिया करते
एक दिन फिर वो सुंदर कन्या शिववीर को देखी और वो उसके पास जाकर बात करने लगा शिववीर ने उसका नाम पुछा उसने प्याली आवाज से कहा "जानकी" उस दिन आपने हम से बात क्यु नहीं की ? शिववीर ने कहा। गुरुदेव ने कहा था किसी भी बहार के युवक के साथ बात नहीं करना ।इस मुलाकात से जानकी और शिववीर की नजदिकी बढ रही थी । जानकी को शिववीर की बातों से अपनापन महसूस हो रहा था।
जानकी को पता था शिववीर सिर्फ उसके के लिए ही आश्रम में आया था। दोनो ही एक दुसरे से प्यार करने लगे थे। एक दिन भी नहीं जाता जो एक दुसरे से बात भी नहीं करते ।जब शिववीर को बुखार आया तो जानकी ने उसकी दिन रात सेवा की । मानो उन दोनो को ऐसा लगता की वो जन्मो-जन्मोसे एक दूसरे को जानते हों।पर यह प्यार वर्धन जो अशोकनगर का युवराज था उसकी आंखों में देखा नहीं जा रहा था । जब सुबह सुबह शिववीर तालाब में स्नान करने गया तब - वर्धन ने जानकी के हाथ बांध कर किसी मुजरिम की तरह उसे जबरदस्ती से ले जाने लगा जानकी की आवाज सुनकर गुरुदेव वर्धन की सामने आ गए जानकी को छोड़ वर्धन गुरुदेव ने कहा पर वर्धन जानकी को छोड़ ने को तयार नहीं था आखिर दोनों की तलवार एक दुसरे से टकराने लगी। गुरुदेव जख्मी होकर धरती पे गिर गए। वर्धन ने जानकी को रथ पर चढ़कर रथ को भगाने लगा कुछ वक्त बाद शिववीर आश्रम आया। उसने गुरुदेव को घायल अवस्था में देखा । शिववीर जानकी को वर्धन से बचाव... यह कहकर गुरुदेव ने अपने प्राण त्याग दिए। शिववीर के आंख से पानी निकल रहे तभी एक गरूड़ शिवचीर के हाथ पर आकर बैठ गया शिववीर ने गरूड़ की पेरो पर बंधी हुई चिठ्ठी निकाली उसमे लिखा था कि
मेरे प्यारे भाई शिववीर तुम्हारी महावन को जरुरत है। युद्ध के लिए जाना है जल्दी आओ - महावन के राजा विश्वजीत

अब शिववीर क्या करेगा महाराज की आज्ञा का पालन करेगा, या जानकी को वर्धन से बचाऐगा?